Friday, June 11, 2010

तुम्हारी मर्ज़ी!

सूरज रोज़ उगेगा
काट  कर अँधेरा
ज्योति,प्राण,उर्जा से भर देगा
वसुधा के अणु-अणु को
अब तुम अणुओं के बम बनाकर
रोज़ बनाओ नागासाकी
हिरोशिमा...
......तुम्हारी मर्ज़ी .
.....
मां वसुंधरा तुम्हे पोसेगी
अनंतकाल तक
जल,जीवन,धन,अन्नराशि  से
अब  तुम  इसकी  कोख  में  ही
ज़हर मिला दो
...तुम्हारी मर्ज़ी!
...
ये लता-पत्र-तरु,मौन-मित्र ये
प्राण दे रहे,त्राण दे रहे
अब तुम इनकी जड़े खोद कर
खाक बना दो
...तुम्हारी मर्ज़ी!
......
गंगा,नील,दोन,ह्वान्ग्वो
जीवन इसमें सदा प्रवाहित
भर-भर अंजुरी पान करो
या गरल बना कर
मरू में अपने प्राण तजो तुम
ज्यों हिरनामन
...तुम्हारी मर्ज़ी!
.......


कव्यगंगा,रांची एक्सप्रेस,५/१२/२००४ को प्रकाशित

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