Saturday, June 12, 2010

पर्यावरण गीत

एक मौसम मन का भी होता है मोहन!
मन का भी होता है पर्यावरण!
इस पट पर जो उभरा है
यह अट-पट सा रेखांकन
सच पूछो तो मन का ही
 है सारा चित्रांकन
तनिक तुम्ही सच बोलो तो
तुम्हारे या
उनके या
हमारे ही
किसी के भी मन ने
अब तक क्या
सचमूच मन से चाहा  है
  मन मधु हो
मुरली हो
चहुँ दिशी हो मधुवन!
सूखे होठ
सतृष्ण नयन
मन हिरन
मरीचिका का मोहजाल
हार गिरे हिरणों के शव
दे रहे दुर्गन्ध
आखिर
हम जा रहे किधर
कुछ भी तो सोचो मोहन!
मन मरुमृग
तन खोज रहा क्यों
रेतों में
हर पल
हर क्षण
वृन्दावन
बोलो मोहन!
मन का भी  होता है पर्यावरण
सुनो मोहन!
.........

कव्यगंगा,रांची एक्सप्रेस,१४ मई 2006 ko prakashit

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