जो स्वप्न देखे थे बड़े हमने कभी
अब हकीकत देख कर सहमे खड़े हैं.
बंद,हड़तालें, प्रदर्शन,जाम,रैले
कल तलक थे जिस तरह अब भी अड़े हैं.
जिस शहर में कल मनी दीपावली थी
आज क्यों कर्फ्यू चिरागों पर जड़े हैं?
नेतृत्व करते थे बगावत के कभी
इन्कलाबों के मुखालिफ वो खड़े हैं.
क्या हो गया इन वादियों को रामजी
इनके गगन पर तो धुएं के तह पड़े हैं
वो न्याय सामाजिक सरसता और अमन
चौमुहानो पर बने सब बुत खड़े हैं.
कव्यगंगा,रांची एक्सप्रेस,९/०१/२००५ को प्रकाशित
अब हकीकत देख कर सहमे खड़े हैं.
बंद,हड़तालें, प्रदर्शन,जाम,रैले
कल तलक थे जिस तरह अब भी अड़े हैं.
जिस शहर में कल मनी दीपावली थी
आज क्यों कर्फ्यू चिरागों पर जड़े हैं?
नेतृत्व करते थे बगावत के कभी
इन्कलाबों के मुखालिफ वो खड़े हैं.
क्या हो गया इन वादियों को रामजी
इनके गगन पर तो धुएं के तह पड़े हैं
वो न्याय सामाजिक सरसता और अमन
चौमुहानो पर बने सब बुत खड़े हैं.
कव्यगंगा,रांची एक्सप्रेस,९/०१/२००५ को प्रकाशित
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