Monday, August 23, 2010

मृगछौना मन

तुमने क्या पूछ दिया मदमाती आँखों से
बहक गया सोने  का भोला मृगछौना मन

अनब्याहे मधुरितु की पलकों पर तैर गयी
आमों के बौरोंसे छनी हुई धुप
साँसों की बासंती  लहरों पर तैर गए
सपनीली चाहों के कई-कई रूप

धरती को छूते-से साखू के अंग
दमक उठा मन का वन टेसू के रंग

तुमने क्या फूंक दिया मधुगंधी साँसों से
महक गया मौसम का रस भींगा सोनामन

उलट दिए रंगों के लबालब कटोरों को
रसवंती धारों में पिरो दिए फूल
इन्द्रधनुष-सी  काया उभर उठी सतरंगी
आँखों के नीले-से सागर के कूल

चहक उठा मन-पाँखी  किरणों के संग
बाँट दिया मौसम ने घर घर उमंग

तुमने क्या बांध लिया गदराई बाँहों से
कसक उठा अनजाने हारील-सा लोना मन

No comments:

Post a Comment