दूर कहाँ छुट गया
सपनों का गाँव !
अनचीन्हा-सा लगता
हर घर, हर ठाँव .
छूट गई मौज कहाँ
सिमटे सैलाब
अनचीते ढूहों का
अज़हद फैलाव
रेतों में कैद हुई
जीवन की नाव
बँसवारी में नन्हे
घरबारी के घेरे
गुड़ियों की शादी पर
संबंधों के फेरे
देख सिहां जाता था
बूढा अलगाव
यादो की बदली से
छन-छन कर वो बातें
पूछ रही है अब मुझसे
उन रिश्तों के माने
सुनकर भी चुप साधे
खूंसट बिलगाव
शब्द अर्थ खोये से
बेमानी कोष
पूछ रहा हर चेहरा
किसका है दोष?
जले तवे-सा मरु है
जमे-जमे पांव
दूर कहाँ छुट गया
सपनों का गांव?
छोटानागपुर भूमि ,डाल्टनगंज,रांची,८/८,१९८१ में प्रकाशित
.
सपनों का गाँव !
अनचीन्हा-सा लगता
हर घर, हर ठाँव .
छूट गई मौज कहाँ
सिमटे सैलाब
अनचीते ढूहों का
अज़हद फैलाव
रेतों में कैद हुई
जीवन की नाव
बँसवारी में नन्हे
घरबारी के घेरे
गुड़ियों की शादी पर
संबंधों के फेरे
देख सिहां जाता था
बूढा अलगाव
यादो की बदली से
छन-छन कर वो बातें
पूछ रही है अब मुझसे
उन रिश्तों के माने
सुनकर भी चुप साधे
खूंसट बिलगाव
शब्द अर्थ खोये से
बेमानी कोष
पूछ रहा हर चेहरा
किसका है दोष?
जले तवे-सा मरु है
जमे-जमे पांव
दूर कहाँ छुट गया
सपनों का गांव?
छोटानागपुर भूमि ,डाल्टनगंज,रांची,८/८,१९८१ में प्रकाशित
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