Friday, June 11, 2010

कौन सा बंधन !

चाँद सारी  रात रोता है! क्यों ?
कोई नहीं जानता
फिर भी चांदनी से
अमृत बरसाता है , बांटता है.
निःशब्द रात्रि में तारे चुपचाप
अश्रुपात करते हैं,
बर्फ बन जाती है.
गिरिराज से गंगा बह निकलती है.
कलियाँ और पत्तियां रात भर
भींगती है
पर,प्रभात होते ही
मधुर हास,और हवा से,
सुबास लुटाती है
धरती के सुगापंखी
आँचल के झलमल-झल मोतियों
से चिटक कर किरणों की लहरें
लहराती हैं
साथ ही व्याकुल
सूरज अपनी सुसुम रेशमी
रुमाल से नेह-छोह   के भीगे गाल
सप-सप पोंछता है
सारे  संसार का रूप ताज़ा और मनोहर हो जाता है
और जीवन में सुरस
बिहान का गीत  भर जाता है
कहीं कोई बंधन दिखाई भी नहीं देता 
सब किस चीज़ से बंध जाते हैं
जड़ जंगम मात्र के ह्रदय 
प्राण एक कैसे हो जाते हैं!

कव्यगंगा,ranchi express ,११/१२/२००५ को प्रकाशित 

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