Thursday, June 10, 2010

फूल और खाद

एक फूल के खाद होने
और खाद के पुनः फूल बन जाने की प्रक्रिया
बहुत जटिल है मित्र!
अस्तित्वहीन मृत्यु का आकल्पन
इसी जटिलता की कोख में जीता है!
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फूल की तरह खाद भी जीवित है
प्राण दायीनी है.
जीवन उसमे किन्तु प्रच्छन्न है
आकर्षणहीन.
और फूल साक्षात् जीवन है
रूप-रस-संपन्न.
उसमे शैशव ,कैशोर्य और  यौवन  का
आह्लाद है
प्रत्यक्ष रुपाकर्षण और आमंत्रण है.
फूल में सृष्टि की संभावनाएं मूर्त हैं
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अदृश्य है खाद की अमृत चेतना
प्रथम दृष्टया अकल्पनीय भी ..
किन्तु इस चेतना के उर्ध्व-गमन की
अंतिम परिणति है पुष्प की सुगंध.
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प्रसून की जरा भी विकर्षित करती है ...
और झर-झर झर  कर
खाद बनते है कुसुम जर्जर
पुनः रससिक्त होते हैं.
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अक्षय उत्स है जीवन-रस
जो बनाता है एक वृत
प्रवहमान  परिधि अविरल
प्रच्छन धार आविष्ट
शाश्वत.
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तल्लीन अंतर खाद का
बहिरंग गौण हो जाता है
कदाचित मलिन
विकर्षक और बदबूदार भी.
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तो तुम कैसे विभेद करोगे मित्र
खाद और कलियों में
कीच और कमल में
मृत्यु की रिक्ति कहाँ मिलेगी तुम्हे?
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फूलों का झड जाना
उनका मर जाना तो नहीं है!
संघनन है प्राण का
सरूप उद्भव के लिए
एक सुखद सुषुप्ति है!
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जीवन का सातत्य
कहीं बाधित नहीं होता .
नहीं होता है खंडित .
मृत्यु नहीं है मित्र !
किसी क्षणांश में भी नहीं.
सतत है जीवन
केवल जीवन!
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शाकद्वीपीय मग्बंधू त्रैमासिक पत्रिका,रांची ( अप्रैल-जून २००५) में prakasit

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