Friday, September 7, 2012

मैं ह्रदय से याद तेरी भूलता सा जा रहा हूँ।

मैं ह्रदय से याद तेरी भूलता सा जा रहा हूँ।

जिस पुरातन प्रेम की मैं याद संजोता  रहा था,
फिर मिलन की आस में ही स्वयं को छलता रहा था।
आदि तिमिर में साथ  भी क्या याद अब वह दे सकेगी 
भूल कर के पथ विजन में आज मैं भरमा रहा हूँ।।

लौट कर के फिर न आया है गया मधुमास जब से 
मैं प्रतीक्षा में रहा हूँ देखता ही राह तब से 
फूल को कैसे समझ लूँ खार बनकर वे चुभेंगे 
किन्तु शोले भी गले का हार कैसे बन सकेंगे।

तू न आओगी अभी तक मैं न ऐसा सोच पाया 
किन्तु तेरे आगमन तक साथ जीवन दे न पाया 
मूक शबनम से ह्रदय की अंत में कुछ बात कह कर 
मैं क्षितिज के पार संगिनी,दूर तुमसे जा रहा हूँ।

मैं ह्रदय से याद तेरी भूलता सा जा रहा हूँ। 


17.10.1966 lesliganj, palamau

आज पूनम है।

आज पूनम है।
दूध सी उजली
 निशा शोभित
पवन गमन वश दोलित
तरुपत्र कर इंगित
पा-पा प्रचलित
चांदनी ज्यों तड़ित
अस्थिर मरुत
अवर्णनीय कलित
सुरभित जग है।

आज पूनम है।

सरसिज संकुचित
कुमुदिनी प्रस्फुटित
सरजल विचलित
लहरी अकथित
कौमुदी आभासित
मुकुरवत विरचित
विदयुतरेख जलगत
अकथ्य छवि अनुगत
कसार में कवी है।

आज पूनम है।


first poem by poet dhanendra prawahi.
it was written around 1961, by this time he was just 15 year old ,
 a student of class 8. 

The cosmos in pleasure

Let me swear and tell the truth
               Lily,
          When i forget you
          I forget the world.
And it was only in deep grief
              Of your departure
           When the lack of mean pleasure
         -Dominated my mind
          My 'self' overwhelmed
        And  i floated in myself
                  And myself only
                Badly self confined.

In my arms the whole cosmos
          I find
When I get drowned in your sweet memory

Those sinful moments of thinking
     That i have ever been
         Without u /Even for a while

मुझको ऐसे ही जीने दो

महल-अन्टारी,कनक -रतन
सब रख लो
लेकिन मुझको बस जाने दो
किसी वृक्ष के अंतर में
फलूं  फुलूं सहूँ शीतातप
झेलूं झंझावत
तीक्ष्ण परसु से छिन्न-भिन्न हो