Friday, September 7, 2012

मैं ह्रदय से याद तेरी भूलता सा जा रहा हूँ।

मैं ह्रदय से याद तेरी भूलता सा जा रहा हूँ।

जिस पुरातन प्रेम की मैं याद संजोता  रहा था,
फिर मिलन की आस में ही स्वयं को छलता रहा था।
आदि तिमिर में साथ  भी क्या याद अब वह दे सकेगी 
भूल कर के पथ विजन में आज मैं भरमा रहा हूँ।।

लौट कर के फिर न आया है गया मधुमास जब से 
मैं प्रतीक्षा में रहा हूँ देखता ही राह तब से 
फूल को कैसे समझ लूँ खार बनकर वे चुभेंगे 
किन्तु शोले भी गले का हार कैसे बन सकेंगे।

तू न आओगी अभी तक मैं न ऐसा सोच पाया 
किन्तु तेरे आगमन तक साथ जीवन दे न पाया 
मूक शबनम से ह्रदय की अंत में कुछ बात कह कर 
मैं क्षितिज के पार संगिनी,दूर तुमसे जा रहा हूँ।

मैं ह्रदय से याद तेरी भूलता सा जा रहा हूँ। 


17.10.1966 lesliganj, palamau

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