Monday, March 11, 2013

सदुपयोग

सदुपयोग 


मोहल्ले में प्रीतिभोज का आयोजन था।बहुत से लोग आ रहे थे। भोजन कर रहे थे , जा रहे थे।नौकर चाकर मेहमानों की सेवा में लगे थे।वे जूठी पतलो को समेटकर बहार गली के कोने में फेंकते जाते।वहां ढेर सारे कुत्ते जूठन पर झपट पड़ते।चिना झपटी में परस्पर हिंसक आक्रमण करते हाँव- हाँव, झाँव -झाँव लड़ रहे थे।नोच खसोट में कितने ही लहुलुहान भी हो गए थे।वहीँ पर आड़े हर कुछ कोढ़ी भिखमंगे पत्तलों के अधखाये अन्खाये पकवान और मिठाइयों को फुर्ती से लपक लेते।कभी कभी किसी कुत्ते से अड़ा-अड़ी भी हो जाती।लेकिन भूखे आदमियों की गुस्सा भरी आक्रामक नज़रों और डांट के डर से कुत्ते ही दांत निपोर कर दम दबा लेते।

मेहमानों का स्वागत करते मेजबान की नज़र इधर पड़ी तो वे आग बबूला होकर नौकरों पर बरस पड़े-
"जूठन इकठ्ठा करने के लिए अन्दर इतना बड़ा पीपा रखा हुआ है, फिर भी तुम लोगों ने यहाँ कुत्तों, कोढियों, और भिखमंगों को भोज दे रखा है। वीरानी दौलत पर दाता दानी बनकर पुन्य कमा रहे हो? हराम का माल समझ रखा है ?"
भद्दी गालीयां  देकर उसने अपनी बात आगे बढाई -
"जाओ!पत्तल पाइप में जमा करो। सब मेरे फार्म हाउस के कम्पोस्ट पिट में जायेंगी। कमबख्त, अरे चीज़ों का सदुपयोग जानते तो यूँ ही मजदूरी कर के मरते ही क्यों तुमलोग?"
यह सुन कर निराश भिखारी धीरे धीरे खिसकने लगे।
बेचारे कुत्ते कुछ समझ नहीं पाए। वे  पत्तलों की आस में खड़े रहे।

(पुनर्नवा, दैनिक जागरण ,11 May 2007  में प्रकाशित )

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