कहाँ हय मिरत !!!
मोइर गेलक का?
एहे तो खिलल रहे
रीझे- रीझे हावा संगे
झुमत रहे डाइर में
एहे तो बांटत रहे
दसो दिसा में
रूप -रंग -गंध कर सन्देश
आब जीउ छोइड देलक का ?
से लेगिन झरतहे !
इकरे जइर तरे
झरल फुलकर ओदा माइंद
फुनगी तक बुदा में
अमरित रस भरत हे
नावां कलि के आइंख ओगल
गते गते उघरत हे !
हेठे जीयत माइंद गुम-सुम
उपरे मह- मह फूल
तरे -उपरे
उपरे -तरे
जिनगी कर रसवंती
धारा अटूट
भीतरे -भीतर
कले -कल
लुक्ले-लुकल बहत हे!
माइंद में जीउ रस
खिलल फूल में जिनगी
कहाँ केजन मिरतू ह्य फूल में कि माइंद में
कहूँ तो नइ दिसत हे !!
[अगम बेस: page no. 35. नागपुरी काव्य संग्रह. nagpuri translation of his own Hindi poem 'फूल और खाद ']
एहे तो खिलल रहे
रीझे- रीझे हावा संगे
झुमत रहे डाइर में
एहे तो बांटत रहे
दसो दिसा में
रूप -रंग -गंध कर सन्देश
आब जीउ छोइड देलक का ?
से लेगिन झरतहे !
इकरे जइर तरे
झरल फुलकर ओदा माइंद
फुनगी तक बुदा में
अमरित रस भरत हे
नावां कलि के आइंख ओगल
गते गते उघरत हे !
हेठे जीयत माइंद गुम-सुम
उपरे मह- मह फूल
तरे -उपरे
उपरे -तरे
जिनगी कर रसवंती
धारा अटूट
भीतरे -भीतर
कले -कल
लुक्ले-लुकल बहत हे!
माइंद में जीउ रस
खिलल फूल में जिनगी
कहाँ केजन मिरतू ह्य फूल में कि माइंद में
कहूँ तो नइ दिसत हे !!
[अगम बेस: page no. 35. नागपुरी काव्य संग्रह. nagpuri translation of his own Hindi poem 'फूल और खाद ']
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