Tuesday, May 14, 2013

कहाँ हय मिरत !!!

कहाँ हय मिरत !!!




ई मउराल फूल!
मोइर गेलक का?
एहे तो खिलल रहे
रीझे- रीझे हावा संगे
झुमत रहे डाइर में
एहे तो बांटत रहे
दसो दिसा में
रूप -रंग -गंध कर सन्देश
आब जीउ छोइड देलक का ?
से लेगिन झरतहे !


इकरे जइर  तरे
झरल फुलकर  ओदा माइंद
फुनगी तक बुदा में
अमरित रस भरत हे
नावां कलि के आइंख ओगल
गते गते उघरत हे !

हेठे जीयत  माइंद  गुम-सुम
उपरे मह- मह फूल
तरे -उपरे
उपरे -तरे
जिनगी कर रसवंती
धारा अटूट
भीतरे -भीतर
कले -कल
लुक्ले-लुकल बहत हे!

माइंद में जीउ रस
खिलल फूल में जिनगी
कहाँ केजन मिरतू ह्य फूल में कि माइंद  में
कहूँ तो नइ दिसत हे !!


 [अगम बेस: page no. 35. नागपुरी काव्य संग्रह. nagpuri translation of his own Hindi poem 'फूल और खाद '] 

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