से दिन कहे लागलक फूल जइर से
'खाद में गड़ाल हिस कोन तप कईर के ?'
धरती से जइर हँसलक , 'ना कर ताव '
फिन तो हिंये आबे अइत ना अगराव।
काँइप उठलक डर के मारे फूल थर थर
झइर गेलयं तखने कतइ पाँख झर झर
छाती लगाय कहलक जइर ठिनक भुइयाँ
'रूप -रस -गंध के हय खान एदे हिंयां।।
[अगम बेस: page no. 68. नागपुरी काव्य संग्रह]
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