Wednesday, May 15, 2013

धनेन्द्र प्रवाही -परिचय

मेरा परिचय 
धनेन्द्र  मिश्र /धनेन्द्र प्रवाही

जन्म- 3  जनवरी 19 4 4  को रांची जिला के तत्कालीन मांडर अब चान्हो थाना अंतर्गत ग्राम चोरेया  में।

माता-पिता - स्व . सावित्री देवी एवं स्व . भवानी शंकर मिश्र


शिक्षा -  प्रारंभिक शिक्षा -गाँव में /रातू एवं daltonganj में
             B.A. English, GLA Colllege Daltonganj, Palamau
             M.A. English, Ignou



लेखन- नागपुरी एवं हिंदी साहित्य के क्षेत्र में झारखंडी रचनाकार धनेन्द्र प्रवाही एक सुपरिचित नाम है।स्वास्थ्य विभाग से अवकाश प्राप्त प्रवाही का अपनी मातृभाषा नागपुरी , जो झारखंड की देशज भाषा है , से विशेष अनुराग है और अपने लेखन से आपने सभी विधाओं  में नागपुरी साहित्य को समृद्ध किया है। नागपुरी एवं हिंदी दोनों ही भाषाओं   में क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर  की पत्र -पत्रिकाओं में आपकी कहानी,कविता,साक्षात्कार एवं आलेख प्रकाशित हैं।  आपने देसी-विदेशी कालजयी रचनाओं और कृतियों का अनुवाद नागपुरी में एक मौलिक सृजनधर्मी की तरह किया है। नागपुरी साहित्य की अभिवृद्धि के लिए अब तक आप कई सम्मानों से अलंकृत किये जा चुके हैं जिनमे झारखंड रत्न उल्लेखनीय है।

नागपुरी में अब तक आपके चार  कविता संग्रह प्रकाशित हैं-
छन दू छन 
लोर
अगम बेस 
सामपियारी 

शीघ्र प्रकाश्य पुस्तकें  हैं-
पाती
कैमरा और कुछ लैंडस्केप
आबा 
लघुकथा संग्रह   



संपर्क  - ग्राम +पत्रालय -चोरेया , रांची -835214

Telephone- 0651-2278007, 9304407017

E-mail-  dhanendraprawahi@gmail.com

Facebook -Dhanedndra prawahi

Blog कुछ क्षण सृजन के 

गद्यकोश पर मेरी रचनाएँ-गद्यकोश/धनेंद्र प्रवाही

Tuesday, May 14, 2013

ग़ज़ल




पछिमे से का आलक हावा 
घरे आब बाज़ार भे गेलक।

मोल -तोल  हय डेग -डेग  में 
रिसता कार-बार भे गेलक।

दारु किडनैप लंगापन तो 
युग कर संसकार भे गेलक।


बुढ़वा घर कर होल संतरी 
छौंड़ा तो फरार भे गेलक।

आइग लागलक का बन में 
चन्दन तक अंगार भे गेलक।

              [अगम बेस: page no. 65. नागपुरी काव्य संग्रह] 

कहाँ हय मिरत !!!

कहाँ हय मिरत !!!




ई मउराल फूल!
मोइर गेलक का?
एहे तो खिलल रहे
रीझे- रीझे हावा संगे
झुमत रहे डाइर में
एहे तो बांटत रहे
दसो दिसा में
रूप -रंग -गंध कर सन्देश
आब जीउ छोइड देलक का ?
से लेगिन झरतहे !


इकरे जइर  तरे
झरल फुलकर  ओदा माइंद
फुनगी तक बुदा में
अमरित रस भरत हे
नावां कलि के आइंख ओगल
गते गते उघरत हे !

हेठे जीयत  माइंद  गुम-सुम
उपरे मह- मह फूल
तरे -उपरे
उपरे -तरे
जिनगी कर रसवंती
धारा अटूट
भीतरे -भीतर
कले -कल
लुक्ले-लुकल बहत हे!

माइंद में जीउ रस
खिलल फूल में जिनगी
कहाँ केजन मिरतू ह्य फूल में कि माइंद  में
कहूँ तो नइ दिसत हे !!


 [अगम बेस: page no. 35. नागपुरी काव्य संग्रह. nagpuri translation of his own Hindi poem 'फूल और खाद '] 

Monday, May 13, 2013

फूल मूल कर बात






से दिन कहे लागलक फूल जइर से 
'खाद में गड़ाल  हिस कोन तप कईर के ?'
धरती से जइर हँसलक , 'ना कर  ताव '
फिन तो हिंये आबे अइत ना अगराव।

काँइप उठलक डर  के मारे फूल  थर थर 
झइर गेलयं तखने कतइ पाँख झर झर 
छाती लगाय कहलक जइर ठिनक भुइयाँ 
'रूप -रस -गंध  के हय खान एदे हिंयां।।

 [अगम बेस: page no. 68. नागपुरी काव्य संग्रह]