Thursday, April 4, 2013

बसंत- बिहान

बसंत- बिहान

ऋतू बसंत में
डाइरह- डाइरह कर
नावां-नावां
कोमल- कोमल
पात-पात कर
चिकनइ ऊपर
पियल नियर
पिछरत -पिछरत
सम्हरत- सम्हरत
सुरुज किरिन
पोंहचल उपवन में
कहे गुलाब में
'संगी रे '
उठ, होलउ बिहान।

[छन-दू-छन: पृष्ठ संख्या ५२ , नागपुरी काव्य संग्रह ]

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