Thursday, June 10, 2010

कतिपय कोंपलों के अर्थ

ये कुछ कोंपल जो हैं .
स्तंभों से खड़े
जराधीन पेड़ों पर भी
कहीं कहीं
साकांक्ष उग आईं .
ताम्र  वर्ण की कोंपलें .

ये अकिंचन नहीं
अतीतप्राय  की वर्तमान से
भावमयी अपेक्षाएं हैं.

कोई तो देखे
नीरस में विलास
प्रकट हो
सहृदय का उदगार
'नीरस तरुरिह विलसति पुरतः'
और कादंबरी कादंबरी हो जाये..
.
ये कतिपय कोंपलें
ये सुकोमल सूचनाएं हैं
की शुष्क भी तरु
उपेक्षनीय नहीं कोई
लोचन चाहिए. मन चाहिए,

गतायुप्राय  वृक्षों का
सुख जाना तो
सघन होते तरल तत्व का
ठोस हो जाना भर है.

सृष्टि-सेवा-कर्म चिर हो
इस निमित
सुखी समिधा बन जाना
या आकाश में खिलने के लिए
बारूद तक हो जाना भी है.

ये मंत्रसिक्त आहुतियों की
संजीवनी सुगंध
दिगंत में फैला दें
फुलझड़ियाँ बन फूलों की
नयनाभिराम  झड़ी लगा दें.

ये कतिपय कोंपलें
दृढ विस्वास भरे.
सत संकल्प सजे
रसग्राही उत्साही
कर्म कुशल  योगी युवजन के
सम्मुख लहरातीं
परीक्षाएं हैं.

जीवन संध्या की
युवा प्रभात से
स्नेहमयी अपेक्षाएं हैं.
ये कतिपय कोम्पलें ....



pushpanjali,choreya, ranchi
भास्कर मग्बंधू (जनवरी-जून २००६ संयुक्तांक) ,रांची में प्रकाशित 

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