Wednesday, July 11, 2018

खिड़की

खिड़की

© Dhanendra Prawahi

बुढ़िया किसी तरह बस पर सवार हुई और पाइप पकड़ कर खड़ी हो गई। उसके हाथ में सीमेंट बोरी का बना एक झोला था जिसमें नीम, करंज और सखुआ दतवन के बंडल भरे थे। उसकी बगल की टू-बाई-टू सीट में बैठा अकेला युवक अपने स्मार्ट फोन में टीप टाप कर रहा था, दूसरी सीट खाली थी।

बस के झटके से बुढ़िया युवक पर गिरते गिरते बची।

"ऐ बूढ़ी! ठीक से खड़ी रह। सर पर चढ़ी आती है।"

बुढ़िया ने पाइप को और जोर से पकड़ लिया था। अगले स्टॉप पर एक कॉलेज गर्ल सवार हुई और युवक के बगल वाली खाली सीट के पास जा खड़ी हुई, "एक्सक्यूज़ मी!"

युवक ने खिड़की की तरफ खिसक कर तुरंत उसके लिए जगह बना दी।

'थैंक्स' कहकर लड़की सीट पर बैठ गई। तब उसने पास खड़ी बुढ़िया को सिर से पैर तक निहारा।

"सॉरी" वह तुरंत अपनी सीट छोड़कर उठ खड़ी हुई।

"दादी, यह सीट तो तुम्हारी है! तुम यहाँ बैठो।"

बुढ़िया को झिझकती देख उसने बाँह पकड़ कर उसे सीट पर बैठाया, "बैठ जाओ आराम से।"

सीट पर बैठी  बुढ़िया डरी-डरी सी युवक की ओर ही देखे जा रही थी, लेकिन युवक खिड़की से बाहर ताकने लगा था।

(अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रिका सेतू के मार्च 2018 अंक में प्रकाशित)

http://www.setumag.com/2018/03/dhanendra-prawahi-laghukatha.html?m=1

Sunday, March 5, 2017

तोयं हमर के हकिस - सामपियारी

तोयं हमर  हकिस के कन्हैया
हाम तो आइज ले नइ जाने पारली

बेइर बेइर हामर मन
अरज से अचरज से तन्मयता से पूइछ हे :
'ई कनहाइ तोर के हके ? बुझ तो !'

बेइर बेइर हामर से सखी मन
चउल से , कटाछ से, कुटिल संकेत से पूइछ हयं:
"कनहाई तोर के हके रे, बोलिस काले नइ ?"

to be continued...
सामपियारी: मंजर बियाह पृष्ठ 41

Tuesday, January 3, 2017

मृगमन









मरू के ये संबोधन
खुद ही दिलवाए थे मृगमन
अब काहे तरस रहे
मृग नयन बरस रहे
छलना है नीर नेह - छलना है।
तेरी है प्यास अगम
सांसो के छलने तक  चलना है।
तृषा व्यथा सहना है।

पौधे और पेड़ घने
दूर हैं खजूर खड़े
कांटे भी सघन छांव देते हैं।
फुल बड़े नाजुक दिल
थोड़ी भी धुप नहीं सहने को साथ कभी रहते हैं।
अपनी ही व्यथा कथा
कहते चुपचाप सदा
निरमोही, बेबस से  झरते हैं।
कांटे ही घाव फोड़
दर्द की मवाद बहा
टीस सभी तन मन की हरते हैं।
होते बदनाम मगर
सबके इलज़ाम सभी
चुप ही चुप  कांटे ही सहते हैं।
मृगमन!


छोटानागपुर भूमि ,डाल्टनगंज,रांची, १२ अप्रैल १९८३ में प्रकाशित 


बसेरा

MY SHORT STORY PUBLISHED ON DAINIK BHASKAR'S, DB STAR
13/11/2014


कुत्ते

दैनिक भास्कर में प्रकाशित 5/2/2015


नन्ही की माँ

दैनिक जागरण में 02/05/2015 को प्रकाशित.........

Saturday, October 22, 2016

कहाँ है मृत्यु : मेरी आवाज़ में

मेरे नाती गोविन्द की बहुत जिद थी कि मेरी आवाज़ में मेरी कोई रचना रिकॉर्ड हो और इन्टरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया के लिए उपलब्ध हो.
उसकी मेहनत और आपके लगाव का नतीजा है मेरा यह पहला प्रयास.
आपके प्रतिक्रियाओं का आकांक्षी : धनेन्द्र प्रवाही

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